सिंधु जल समझौता: भारत-पाकिस्तान के बीच जल बंटवारे का ऐतिहासिक समझौता

क्या है सिंधु जल समझौता..??

  • सिंधु जल समझौता भारत और पाकिस्तान के बीच 19 सितंबर 1960 को हस्ताक्षरित एक जल-वितरण समझौता है, जिसे विश्व बैंक ने मध्यस्थता की थी।
  • यह समझौता सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों के जल के उपयोग को नियंत्रित करता है, जिसमें पूर्वी नदियां (रावी, ब्यास, सतलुज) भारत को और पश्चिमी नदियां (सिंधु, झेलम, चिनाब) पाकिस्तान को आवंटित की गई हैं।
  • भारत को पूर्वी नदियों का पूरा उपयोग करने की अनुमति है, जबकि पश्चिमी नदियों पर सीमित सिंचाई और जलविद्युत परियोजनाओं के लिए उपयोग की अनुमति है।
  • यह समझौता कई युद्धों के बावजूद लागू रहा है, लेकिन हाल के तनाव, जैसे 2025 में भारत द्वारा निलंबन, विवादों को जन्म दे रहे हैं।

समझौते का इतिहास

सिंधु जल समझौता 1947 के विभाजन के बाद शुरू हुए जल विवादों को सुलझाने के लिए बनाया गया था। 1948 में भारत ने रावी नदी पर पानी रोकने की धमकी दी थी, जिसके बाद विश्व बैंक ने 1952 में मध्यस्थता शुरू की और 1960 में समझौता हुआ।

मुख्य प्रावधान

  • पूर्वी नदियां: रावी, ब्यास, सतलुज का जल भारत को पूरी तरह से आवंटित, औसत वार्षिक प्रवाह 41 बिलियन m³।
  • पश्चिमी नदियां: सिंधु, झेलम, चिनाब का जल पाकिस्तान को, औसत वार्षिक प्रवाह 99 बिलियन m³, लेकिन भारत को सीमित उपयोग की अनुमति (जैसे 701,000 एकड़ तक सिंचाई)।
  • स्थायी सिंधु आयोग दोनों देशों के बीच सहयोग और डेटा साझा करने के लिए जिम्मेदार है।

वर्तमान स्थिति

24 अप्रैल 2025 तक, समझौता अभी भी लागू है, लेकिन भारत ने हाल ही में, 23 अप्रैल 2025 को, एक आतंकवादी हमले के बाद इसे निलंबित कर दिया है, जिससे पाकिस्तान की जल सुरक्षा पर असर पड़ सकता है। विवाद, विशेष रूप से जलविद्युत परियोजनाओं पर, जारी हैं।


विस्तृत सर्वेक्षण नोट

सिंधु जल समझौता (Indus Water Treaty, IWT) भारत और पाकिस्तान के बीच एक महत्वपूर्ण जल-वितरण समझौता है, जो 19 सितंबर 1960 को कराची में हस्ताक्षरित हुआ था। इसे विश्व बैंक (तब अंतरराष्ट्रीय पुनर्निर्माण और विकास बैंक) की मध्यस्थता से नौ साल की लंबी बातचीत के बाद अंतिम रूप दिया गया था। समझौते पर भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति फील्ड मार्शल अयूब खान ने हस्ताक्षर किए थे। यह समझौता सिंधु नदी प्रणाली की छह नदियों—सिंधु, झेलम, चिनाब, रावी, ब्यास और सतलुज—के जल के उपयोग और बंटवारे को नियंत्रित करता है, और इसे विश्व के सबसे सफल जल समझौतों में से एक माना जाता है, जो कई युद्धों और तनावों के बावजूद लागू रहा है। हालाँकि, हाल के वर्षों में, विशेष रूप से 2025 में, इस पर विवाद और चुनौतियां बढ़ी हैं।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

1947 में भारत और पाकिस्तान के विभाजन के बाद, सिंधु नदी प्रणाली का जल दोनों देशों के लिए एक प्रमुख मुद्दा बन गया। अधिकांश नदियां भारत में शुरू होती हैं, लेकिन इनका बड़ा हिस्सा पाकिस्तान में बहता है, जिससे जल बंटवारे को लेकर तनाव उत्पन्न हुआ। 1948 में, भारत ने रावी नदी पर पानी रोकने की धमकी दी, जिससे विवाद और गहरा गया। इस स्थिति को सुलझाने के लिए, पाकिस्तान ने 1951 में संयुक्त राष्ट्र (UN) में मामला उठाया, और विश्व बैंक ने 1952 में मध्यस्थता शुरू की। नौ साल की लंबी बातचीत के बाद, 1960 में कराची में समझौता हस्ताक्षरित हुआ, जिसे तत्कालीन विश्व बैंक अध्यक्ष यूजीन ब्लैक की पहल से संभव बनाया गया।

नदियों का बंटवारा और जल उपयोग

सिंधु जल समझौता नदियों को दो श्रेणियों में बांटता है:

  • पूर्वी नदियां (Eastern Rivers): रावी, ब्यास और सतलुज, जिनका औसत वार्षिक प्रवाह 41 बिलियन m³ (33 मिलियन एकड़-फीट) है, भारत को पूरी तरह से आवंटित हैं। भारत इन नदियों के जल का उपयोग बिना किसी प्रतिबंध के कर सकता है, जिसमें सिंचाई, जलविद्युत, और अन्य उपयोग शामिल हैं।
  • पश्चिमी नदियां (Western Rivers): सिंधु, झेलम और चिनाब, जिनका औसत वार्षिक प्रवाह 99 बिलियन m³ है, मुख्य रूप से पाकिस्तान को आवंटित हैं। हालांकि, भारत को इन नदियों पर कुछ सीमित उपयोग की अनुमति है, जैसे:
    • सीमित सिंचाई (कुल 701,000 एकड़ तक, जिसमें 2011-12 तक 784,955 एकड़ का उपयोग हुआ, और 0.5 मिलियन एकड़-फीट पानी सालाना छोड़ा गया)।
    • गैर-उपभोगी उपयोग, जैसे जलविद्युत उत्पादन, नेविगेशन, मत्स्य पालन, आदि, जिसमें रन-ऑफ-द-रिवर (RoR) परियोजनाएं शामिल हैं, जहां पानी को रोकने के बजाय बहते पानी का उपयोग किया जाता है।
    • भारत को पश्चिमी नदियों पर 3.6 मिलियन एकड़-फीट पानी स्टोर करने की अनुमति है, लेकिन अभी तक कोई निर्माण नहीं हुआ है।

इस बंटवारे से भारत को कुल जल का लगभग 30% और पाकिस्तान को 70% मिलता है।

संस्थागत तंत्र और सहयोग

सिंधु जल समझौते के तहत, दोनों देशों ने एक स्थायी सिंधु आयोग (Permanent Indus Commission, PIC) की स्थापना की, जिसमें भारत और पाकिस्तान के आयुक्त शामिल हैं। यह आयोग निम्नलिखित कार्य करता है:

  • वार्षिक बैठकें आयोजित करना और डेटा साझा करना, जैसे नदी प्रवाह डेटा (प्रति तिमाही) और कृषि उपयोग डेटा (वार्षिक)।
  • विवादों को सुलझाने के लिए मंच प्रदान करना।
  • बाढ़ राहत के लिए 1 जुलाई से 10 अक्टूबर तक के दौरान बाढ़ डेटा साझा करना।

आयोग ने अब तक 117 दौरों और 110 बैठकों का आयोजन किया है, जो इसकी प्रभावशीलता को दर्शाता है।

विवाद समाधान तंत्र

समझौते में एक तीन-स्तरीय विवाद समाधान प्रक्रिया है:

  1. आयोग स्तर: दोनों देशों के आयुक्त पहले विवाद को सुलझाने की कोशिश करते हैं।
  2. तटस्थ विशेषज्ञ (Neutral Expert): यदि आयोग विफल होता है, तो विश्व बैंक एक तटस्थ विशेषज्ञ नियुक्त कर सकता है।
  3. मध्यस्थता न्यायालय (Court of Arbitration): अंतिम चरण में, मामला मध्यस्थता न्यायालय में जाता है, जैसे किशनगंगा जलविद्युत परियोजना के मामले में, जहां कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन ने भारत के पक्ष में फैसला दिया।

हाल के वर्षों में, पाकिस्तान ने भारत की कई जलविद्युत परियोजनाओं, जैसे किशनगंगा (Kishanganga) और रातले (Ratle), पर आपत्ति जताई है, दावा करते हुए कि ये समझौते का उल्लंघन करती हैं। भारत का कहना है कि ये परियोजनाएं समझौते के नियमों के तहत हैं, और तकनीकी मतभेदों को सुलझाने के लिए तटस्थ विशेषज्ञ या मध्यस्थता का सहारा लिया गया है।

आर्थिक और वित्तीय पहलू

समझौते के तहत, भारत ने पाकिस्तान को अपने नहर निर्माण के लिए वित्तीय सहायता दी थी। 1960 में, भारत ने 62,060,000 पाउंड स्टर्लिंग (125 मीट्रिक टन सोने के बराबर) की राशि दस वार्षिक किश्तों में दी, जो 1965 के युद्ध के दौरान भी जारी रही। इसके अलावा, अन्य देशों जैसे ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, और संयुक्त राज्य अमेरिका ने भी पाकिस्तान को अनुदान और ऋण दिए, जैसा कि नीचे दी गई तालिका में दिखाया गया है:

देश मुद्रा मूल अनुदान (1960) पूरक अनुदान (1964) मूल ऋण (1960) पूरक ऋण (1965)
भारत GB£ 62,060,000 दस वार्षिक किश्तें
ऑस्ट्रेलिया AU$ 6,965,000 4,667,666
कनाडा Can$ 22,100,000 16,810,794
पश्चिम जर्मनी DM 126,000,000 80,400,000
न्यूजीलैंड NZ£ 1,000,000 503,434
संयुक्त राष्ट्र GB£ 20,860,000 13,978,571
संयुक्त राज्य US$ 177,000,000 118,590,000 0 0
IRDC बैंक US$ विभिन्न मुद्राओं में 0 विभिन्न मुद्राओं में 0

जल उपयोग और क्षेत्रीय असंतुलन

भारत पूर्वी नदियों से 38 बिलियन m³ (15%) जल का उपयोग करता है, जबकि 9.3 बिलियन m³ अप्रयुक्त रहकर पाकिस्तान में बहता है। जम्मू और कश्मीर में जल आवंटन अपर्याप्त है, जहां केवल एक छोटा हिस्सा सिंचित होता है, जबकि पाकिस्तान में 80.52% खेती योग्य भूमि सिंचित है। भारत पश्चिमी नदियों पर रन-ऑफ-द-रिवर जलविद्युत परियोजनाएं बना सकता है, जिसमें संचालन पूल क्षमता सीमित है, लेकिन मानसून के दौरान अतिरिक्त भंडारण अनुमत है।

महत्व और चुनौतियां

सिंधु जल समझौता कई युद्धों (1965, 1971, 1999) के बावजूद लागू रहा, जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक सफल मॉडल माना जाता है। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति ड्वाइट आइजनहावर ने इसे “एक उदास विश्व चित्र में एक उज्ज्वल स्थान” कहा था। फिर भी, हाल के वर्षों में, विशेष रूप से 2019 के पुलवामा हमले और 2025 के पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद, भारत ने समझौते की समीक्षा और निलंबन की बात की है। 23 अप्रैल 2025 को, भारत ने समझौते को निलंबित कर दिया, जिससे पाकिस्तान की कृषि और जल सुरक्षा पर संभावित प्रभाव पड़ सकता है। इसके अलावा, जलविद्युत परियोजनाओं जैसे सलाल बांध, तुलबुल परियोजना, बगलिहार पावर प्लांट, और किशनगंगा परियोजना पर विवाद रहे हैं, जिनमें से कुछ तकनीकी विशेषज्ञों या मध्यस्थता न्यायालय द्वारा सुलझाए गए हैं।

वर्तमान स्थिति और भविष्य

24 अप्रैल 2025 तक, समझौता अभी भी तकनीकी रूप से लागू है, लेकिन भारत द्वारा हालिया निलंबन और 1 मार्च 2025 को रावी नदी के प्रवाह को रोकने के बाद (शाहपुरकंडी बांध परियोजना के पूरा होने के बाद), दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ा है। भारत अपनी जलविद्युत क्षमता बढ़ाने पर जोर दे रहा है, जबकि पाकिस्तान जल प्रवाह की सुरक्षा को लेकर चिंतित है। 2023 में, भारत ने समझौते की पुनर्निगोशिएशन की सूचना दी थी, जिसका पाकिस्तान ने विरोध किया। पर्यावरणीय चुनौतियां, जनसंख्या वृद्धि, और तकनीकी मतभेद इस समझौते के भविष्य को जटिल बना रहे हैं।

निष्कर्ष

सिंधु जल समझौता भारत और पाकिस्तान के बीच जल संसाधनों के प्रबंधन के लिए एक महत्वपूर्ण ढांचा है, जो कई दशकों से टिकाऊ रहा है। फिर भी, हाल के राजनीतिक और तकनीकी तनाव इसे लागू करने में चुनौतियां पैदा कर रहे हैं। यह समझौता दोनों देशों के लिए जल संसाधनों के संतुलित उपयोग में मदद करता है, लेकिन भविष्य में पर्यावरणीय और सुरक्षा संबंधी मुद्दों को संबोधित करने की आवश्यकता है।

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